सोमवार, 24 अगस्त 2015

"भगवान की कृपा कैसे प्राप्त करें?"

           भगवान की कृपा कैसे प्राप्त करें? आपकी जिज्ञासा का दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न। पहला प्रश्न, जब आपने पूछा था, भगवान हैं या नहीं। और जब आपने जान कर, अनुभव कर, ये माना कि भगवान हैं, तो अब ये प्रश्न स्वाभाविक है कि, "भगवान की कृपा कैसे प्राप्त करें?" भगवान को कैसे जाने, उनको कैसे देखें, उनका सानिध्य कैसे प्राप्त हो, उनका अलौकिक प्रेम कैसे मिले, उनका आनंद कैसे मिले? आज की चर्चा में हम लोग, इन सब प्रश्नों पर एक-एक कर विचार करेगें।
           बहुतों बार आपने लोगों से सुना होगा, 'भगवान को आपने देखा है? आप दिखा दो तो हम माने!'। 'यहाँ पर अभी बुला लाओ, तो मान जाएँ'। अक्सर लोग ये पूछ बैठते हैं। यहाँ दो-तीन बातें हैं, पहला, 'भगवांन को मैंने देखा है, या भगवान मुझे दिखाई देते हैं', इस बात से आप को क्या लाभ मिलेगा?, जो ये पूछ रहें हैं। जैसे मैंने कोई परीक्षा पास कर ली, तो इस से, आप को परीक्षा के बारे में कुछ भी पता नहीं चलेगा। इसी प्रकार मैं ने भगवान को देखा है या नहीं, इस बात से आपको कोई प्रयोजन नहीं होना चाहिए। दूसरी बात, 'आप भगवांन को यहाँ बुला लीजिये, फिर मैं  मान जाऊँ'। ये बात भी वैसी ही हुई कि, आप मुझे उपाधि दे दो, फिर मैं उसकी तैयारी करूँगा, पहले मुझे प्रधानमंत्री बना दो, फिर मैं चुनाव लड़ूँगा। और एक बात, 'पहले मुझे भगवान दिखा दो', जैसे इन्होंने हर चीज को देख कर ही जाना है। अब कोई इन से पूछो, हवा को तो आप ने देखा नहीं, फिर तो हवा को आप नहीं मानते होगें। आप अमेरिका नहीं गए हैं, तो आप के लिए अमेरिका भी नहीं है? तो कोई कहे हवा को दिखा दो, तो हम माने। तो क्या लगता है, ऐसे लोग कब मानेगें कि हवा है? देखने की चीज तो नहीं है, फिर कैसे माने कि हवा है। साधारण सी बात है, अगर हवा को मानना है, तो इसका अनुभव करना होगा। अगर हवा को जानना है, तो इसकी शीतलता को महसूस करना होगा। ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें हम अनुभव के द्वारा ही जान सकतें हैं। पर अब इसका मतलब ये मत निकालिएगा कि भगवान को देखा नहीं जा सकता। भगवान को देखा जा सकता है, बहुतों ने देखा है, बहुतों बार देखा है। भगवान को बुलाया जा सकता है, भगवान का सानिध्य मिल सकता है। तो भगवान देखे गए हैं, जाने गए हैं, पर इन सबकी अलग शर्तें हैं। और बिना उन शर्तों को पूरा किये आप को कुछ भी पता नहीं लग पायेगा। हम सब इस पर आगे चर्चा करेगें।
           तो पहली बात, भगवान को जानने और मानने के लिए केवल देखने की शर्त नहीं हो सकती। अब दूसरी बात लें, अगर किसी चीज को हम देख भी लें तो, हमारा काम बन जायेगा, इसकी कोई संभावना नहीं। अगर किसी प्रकार से कोई आप को भगवान का दर्शन करा भी दे, तो भी आप को यथेष्ठ फल नहीं मिल पायेगा। जैसे रसगुल्ला, आप सब ने देखा होगा, देखने की बात क्या बहुत बार खाया भी होगा। तो कल जब आप किसी के घर जाएँ और वह पूरे थाली में रसगुल्ला भर कर ले आये और केवल दिखा के पूछे, कैसा लगा? मीठा है या नहीं, संतुष्ट हुए की नहीं? तो आप क्या कहेगें! उस समय आप कहेगें, मित्र रसगुल्ला कोई देखने की चीज है क्या? जब तक खिलाओगे नहीं, स्वाद का कुछ भी पता नहीं चलेगा। रसगुल्ले की मिठास जानना है तो उसे खाना पड़ेगा, कोई बस देख कर रसगुल्ले के मिठास को नही बता सकता। हो सकता है, उसे मीठी चाश्नी में डुबोया ही न गया हो, हो सकता है उसमे मिर्ची का चूर्ण भर दिया गया हो, हो सकता है वो सजावट का कोई खिलौना भर हो। तो केवल देखने से ही बात नहीं बनेगी। अगर प्रारब्धवश भगवान को देख भी लिए, तो अनुभव नहीं कर पायेगें, पहचान नहीं पायेगें। और जब तक पहचानेगें नहीं, तब तक प्रेम नहीं होगा। एक कथा आती है रामायण में, हनुमानजी को सुग्रीव ने बुलाया और कहा जा कर देखिये, ये कौन दो वीर हैं, जो हमारे पर्वत की ओर  ही आ रहे हैं। कहीं ये बाली का भेजा, कोई गुप्तचर तो नहीं। सुग्रीव ने साक्षात परमेस्वर को अपनी ओर आते देखा, पर पहचान नहीं पाये। और हनुमानजी भी जा कर भगवान से पूँछते हैं, आप दोनों वीर कौन हैं और कहाँ से आ रहें हैं? भगवान स्वयं दर्शन दे रहें हैं पर पहचान नहीं पाये, जिसके कारण प्रेम नहीं हुआ। आगे की कथा आप सब ने सुन राखी होगी। तो तातपर्य यह कि केवल भगवान को देख लेने भर से काम नहीं बनेगा। हो सकता है, आप को रोज भगवान दर्शन देतें हों, रोज आप उनसे बातें भी करतें हों, पर पहचान नहीं होने के कारण आप उनके दिव्य और अलौकिक प्रेम से अभी तक वंचित रहें हैं।  
           तो भगवान को केवल देखने की शर्त कर आप चाहें कि, आप का सारा काम बन जाये तो यह संभव नहीं। भगवान को देख कर, उनको जान कर, अपनी बुद्धि में बिठा कर, उनसे प्रेम करना होगा, उनकी भक्ति करनी होगी। ऐसे नहीं कि पहले दिखा दो फिर मैं मानूँ। आपको अनन्य भक्ति करनी होगी, निष्क्षल प्रेम करना होगा, उनको रिझाना होगा, उनको मनाना होगा। तब प्रभु दया कर, करुणा कर, दर्शन देगें और आप तब उनको पहचान भी पायेगें। तब वह दर्शन बस इन्द्रियों का दर्शन नहीं होगा, वह सच्चा दर्शन होगा, और आप उनका अनुभव भी कर पायेगें। उस अनंत प्रेम की गंगा में डुबकी लगा सकेगें। उस असीम आनंद की अनुभूति कर पायेगें, जिसके बाद और कुछ पाने की जरुरत नहीं रह जाएगी।
cont.
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