मंगलवार, 17 मई 2016

"प्रश्नोत्तरी"

प्रश्न १ : धर्म क्या है?
उत्तर : जिसे धारण किया जाए(धारण करने योग्य), या जो धारण करता हो।
प्रश्न २ : भगवत-धर्म क्या है?
उत्तर : जिसके द्वारा भगवान् की प्राप्ति होती है।
प्रश्न ३ : धर्म के लक्षण क्या-क्या हैं ?
उत्तर : भागवत-महापुराण में धर्म के तीस लक्षण बताए गए हैं, जो की इस प्रकार हैं...
"सत्यं दया तपः शौचं तितिक्षेक्षा शमो दमः।
अहिंसा ब्रह्मचर्य च त्यागः स्वाध्याय आर्जवम् ॥

सन्तोषः समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरमः शनैः । 
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्  ॥

अन्नाद्यादेहः संविभगो भूतेभ्यच्श यथा हर्त: । 
तेष्वात्मदेवताबुद्धिः सुतरां नृषु पाण्डव ॥

श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गतेः ।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम् ॥

नृणामयं परो धर्मः सर्वेषां समुदाहृत: ।
त्रिंशल्लक्षणवान्यराजन्सर्वात्मा येन तुष्यति ॥ 

-भागवत-महापुराण ७/११/८-१२
"युधिष्ठिर! धर्म के ये तीस लक्षण कहे गए हैं- 
१. सत्य, २. दया, ३. तपस्या, ४. शौच, ५. तितिक्षा, ६. उचित-अनुचित का विचार, ७. मन का संयम, ८. इंद्रिओं का संयम, ९. अहिंसा, १०. ब्रह्मचर्य, ११. त्याग, १२. स्वाध्याय, १३. सरलता, १४. सन्तोष, १५. समदर्शी महात्माओं का सेवा, १६. धीरे-धीरे सांसारिक चेष्टाओं से निवृति, १७. मनुष्य के अभिमानपूर्ण प्रयत्नों का फल उल्टा होता है- ऐसा विचार, १८. मौन, १९. आत्मचिंतन, २०. प्राणियों को अन्न आदि का यथायोग्य विभाजन, २१. उनमें और विशेष करके मनुष्यों में अपने आत्मा तथा इष्टदेव का भाव, २२. संतो के परम आश्रय भगवान् श्रीकृष्ण के नाम-गुण-लीला अदि का श्रवण, २३. कीर्तन, २४. स्मरण,  २५. उनकी सेवा, २६. पूजा और, २७.नमस्कार,२८. उनके प्रति दास्य, २९. सख्य, और ३०. आत्म-समर्पण- यह तीस प्रकार का आचरण सभी मनुष्यों का परम धर्म है। इसके पालन से सर्वात्मा भगवान् प्रसन्न होते हैं। "  
प्रश्न ४ : शास्त्रों के अनुसार वर्णाश्रम-धर्म कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : भागवत-महापुराण में चार वर्ण और चार आश्रम बताये गए हैं....
वर्ण  : १. ब्राह्मण , २. क्षत्रिय , ३. वैश्य  और  ४. शूद्र 
आश्रम  : १. ब्रह्मचर्य , २. गृहस्थ , ३. सन्यास  और ४. वानप्रस्थ
कोई  भी मनुष्य अपने कर्म के अनुसार इनमे से कोई भी  वर्ण  और आश्रम  का हो सकता है। मनुष्य की जाति बस प्रारंभिक स्वाभाव को बताती है। इस प्रकार कोई भी मनुष्य इन सोलह प्रकार के वर्णाश्रम-धर्म में से कोई भी का पालन कर के जीवन जी सकता है।
प्रश्न ५ : धर्म के मार्ग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : वस्तुतः धर्म के दो मार्ग बताए  गए हैं, १. प्रवृति मार्ग और २. निवृति मार्ग
"प्रवृत्तं च नृवित्तं च द्विविधं कर्म वैदिकम ।
आवर्तेत प्रवित्तेन निवृत्तेनाश्रुतेअमृतम् ॥"

-भागवत-महापुराण ७/१५/४७

"वैदिक कर्म दो प्रकार के होते हैं-एक तो वे जो वृत्तियों को उनके विषयों की ओर ले जाते हैं-प्रवृत्तिपरक , और दूसरे वे जो वृत्तियों को उनके विषयों की ओर से लौटकर शान्त एवं आत्म साक्षात्कार के योग्य बना देते हैं-निव्रित्तिपरक। प्रवृत्तिपरक कर्म मार्ग से बार-बार जन्म-मृत्यु की प्राप्ति होती है और निवृत्तिपरक भक्ति मार्ग या ज्ञान मार्ग के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति होती है ।"
continue...
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