सोमवार, 11 जनवरी 2016

"तमसो माँ ज्योतिर्गमय"

" असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर् मा अमृतं गमय " 
ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति ॥ 
- बृहदारण्यक उपनिषद् -१.3.२८ 
"हम उस परम शक्ति से प्रार्थना करते हैं कि वो हमें अज्ञान से सत्य की ओर ले चले, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले, जन्म-मृत्यु से मोक्षता की ओर ले चले।"
           बृहदारण्यक उपनिषद् का उपर्युक्त मंत्र, सदियों से हमारे मन में रहा है, हर किसी के मन में रहा है। इसका कारण है जीव की चैतन्य शक्ति, जो जीव को निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहती है, अपने दुःखों से असीम सुख के लिए, घनघोर अंधकार से प्रकाश के लिए, संसार की भागम-भाग से परम शांति के लिए।अभी कुछ दिन पहले की बात है, हमारे घर एक परिचित आए। बहुत अच्छे घर से हैं, बहुत पढ़े-लिखें हैं, अच्छी नौकरी है, सब सही चल रहा है, कहने का सार यह कि एक सफल व्यक्ति को जो कुछ भी चाहिए, सब है इनके पास, एक खुशहाल जिंदगी जी रहें हैं। तो जब ये हमारे घर आये तो यूँ ही कुछ बातचीत चल पड़ी। बातचीत से पता चला ये भी बहुत खुश नहीं हैं, जीवन जीने की कमोवेश हर चीज है इन के पास, पर इनको भी कुछ कमी लग रही है। ये भी कुछ खोज रहें हैं। सांसारिक चीज तो सब कुछ है, पर फिर भी तृप्त नहीं हैं, मतलब कुछ अभी भी बचा है पाने को। बात आगे बढ़ी तो बोले, "कुछ खाली-खाली सा है। बचपन से कहा गया, अच्छी से पढ़ाई करो तब, अच्छे विद्यालय में दाखिला मिलेगा, फिर अच्छे विद्यालय में दाखिला मिला। आगे बोला गया अब और मेहनत करो, तभी अच्छे नंबर से पास करोगे और अच्छे कॉलेज में जगह मिलेगा। फिर से एक और दौड़ शुरू हुई। कॉलेज में जाने के बाद लगा यहाँ तो और ज्यादा भागम-भाग है। भागो नहीं तो नौकरी नहीं मिलेगी। अब नौकरी भी मिल गयी, लेकिन भागने का क्रम यहाँ भी बना है। आगे प्रमोशन चाहिए, और प्रमोशन चाहिए और ये क्रम जारी है। तो जिस शांति के लिए भागे जा रहे हैं वो तो मिली ही नहीं, और अगर इसी तरह भागते रहे तब तो और भी न मिलेगी, क्योंकि हमसे से जो आगे थे, वो भी अभी तक भाग रहे हैं, और जीवन प्रयन्त भागते ही रहते हैं। तो जीवन में जो लक्ष्य तय किया उसे प्राप्त किया, फिर भी लगता है कुछ पाने को बच ही रह गया, ऐसा क्या है? ऐसा क्यों है?" पूरी बात उन्होंने एक साँस में कह डाली, शयद बहुत दिनों से बात उनके मन में घूम रही थी। किसी से कहने का सोच रहे थे पर कह नहीं पाये थे। उस दिन जब चर्चा चली तो वर्षो की दबी चाहत बहार आ गयी और वो अपनी जिज्ञासा बता पाये। तो शुरू में हम जिस शांति, जिस आनंद, जिस ज्ञान के खोज की बात कर रहे थे, इनका भी प्रश्न वही है। ये ज्ञान की उसी एक किरण को ढूंढ रहे हैं जो प्रकाश की ओर ले जाये, जो सत्य की ओर ले जाये, जो मोक्ष की ओर ले जाये। आइए आज की चर्चा में हम इन सबों पर एक-एक कर के विचार करें। वो सत्य, ज्ञान, प्रकाश क्या है, हम इसे क्यों चाहते हैं और उसे कैसे प्राप्त किया जाये?  
           तो सबसे पहले, वह क्या है जिसको पाने के लिए हम सब जीवन भर प्रयत्नशील रहते हैं? अलग-अलग लोगों से आप पूछें तो लोग अलग-अलग उत्तर देगें। बहुधा वह उत्तर उनके तात्कालिक जरुरत के अनुसार होती है। जैसे किसी विद्यार्थी को पूछें तो वह कहेगा, परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाएं। किसी व्यापारी को पूछें तो कहेगा अधिक से अधिक मुनाफा कामना। किसी किसान से पूछें तो वह कहेगा अच्छी फसल हो जाये। अलग-अलग लोग अलग-अलग बताते हैं, लेकिन ये उनका अंतिम लक्ष्य नहीं होगा क्योंकि इन सब के मिल जाने पर भी पूर्ण तृप्ति नहीं मिलती। कुछ और पाने की तमन्ना घर कर जाती है। अगर हम सब विचार कर के देखें तो पता लगेगा कि जीवन में हम जो चाहते हैं वो तो बस साधन है, असल में साध्य तो कुछ और ही है। जैसे परीक्षा में उत्तीर्ण होना, अधिक मुनाफा होना, अच्छी फसल होना सब बस एक खुशहाल जीवन के जीने का साधन मात्र है।ऐसा जीवन जिसमें दुखः का लवलेश भी न हो, कभी न ख़त्म होने वाला आनंद हो शांति हो।  हम सब को बस वही एक की चाहत है। वह एक सत्य, जिसको जान लेने पर फिर भटकना नहीं पड़ता है, वह एक ज्ञान जिसके मिल जाने से फिर कुछ और पाने को नहीं बचता, वो प्रकाश की एक किरण, जिसके बाद अंधकार से सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है। हमें ऐसे सत्य, ज्ञान और प्रकाश की जरुरत है। तो अब हमें पता चल गया कि  हमें क्या चाहिए। पर ये सब हमें क्यों चाहिए? इसका कारण  है हमारी चेतना। हम सब जीव की चैतन्यता हमें सदा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहती है, हम अंधकार से प्रकाश की ओर जाना चाहते हैं, ज्ञान चाहते हैं, शांति चाहते हैं, आनंद चाहते हैं। और इसी ज्ञान पिपासा को शांत करने के लिए हम सब जीव अनवरत प्रयत्न करते रहें हैं, आगे भी करते रहेगें, और तब तक हम प्रयत्न करते रहेंगें, जब तक की वो हमें मिल नहीं जाता है। कोई फर्क नहीं पड़ता की हम कौन हैं, किस जाति-धर्म के हैं, किस देश में रहते हैं, कौन सी भाषा बोलते समझते हैं, कितना पढ़े-लिखे हैं, कितनी संपत्ति है? कोई फर्क नहीं पड़ता। हर कोई इसी एक को पाना चाहता है, इसी एक प्रश्न का उत्तर चाहता है, और इसी के लिए सदा प्रयत्न करते रहता है। और कोई अभिलाषा नहीं, और कोई इच्छा नहीं, बकीं सारी इच्छाएँ बस इस एक को पाने के लिए होती है। तो संसार में हम जो भी कर्म करते हैं, उसके पीछे बस एक ही सोच होती है, एक ही उद्देश्य होता है, कि मोक्षता, अमरता, शांति आदि। और ये सब हमें अभी तक नहीं मिला है। तो हमारे मन में जो खालीपन है उसका बस एक कारण है कि हमें अभी तक अपना लक्ष्य नहीं मिला।  अपना अभीष्ट मिले यही हमारी प्रेम पिपासा है, यही जिज्ञासा है, खोजी मन इसी एक को पाने के लिए प्रयत्नशील है, और इसलिए कहता है, "तमसो माँ ज्योतिर्गमय"। चाहे अच्छे विद्यालय में दाखिला हो या अच्छी नौकरी पाने की चाहत, सब इसीलिए की जीवन में दुःखों से मुक्ति मिले और परम शांति मिले। तो एक बात तो तय हुई कि हमें सच्चा सुख जो कि  अभी तक नहीं मिला वो हमें चाहिए। अब ये देखना है कि यह हमें कैसे मिल सकता है?
           तो एक बात तय हुई, हर कोई सत्य की खोज में है, ज्ञान के लिए उत्सुक है, प्रकाश पाने के लिए प्रयत्नशील है। अब ये देखना है कि इन को हम कैसे प् सकते हैं? संसार में जब हमें कुछ चाहिए होता है तो हम क्या करतें हैं? पहला हम उसे कर्म कर प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। जैसे भूख लगी तो खाना जा कर बना लिया, या मेहनत कर पैसे कमाए और खरीद लिया। पर अगर आप उसे मेहनत कर, नहीं पा सकते और वह किसी के पास है, तो एक तरीका है कि यदि आप उससे अधीक शक्तिशाली हों तो उससे छीन लिया जाये। लेकिन जब कोई वास्तु कर्म कर नहीं मिल पा रही, और हम उसे किसी से छीन भी नहीं सकते, अगर इन में से कुछ भी न संभव है तो, अंत में एक ही तरीका बचता  है कि जिसके पास वह है उसकी भक्ति कर उससे मांग लिया जाये। हम जिस असीम सुख-शांति की बात करतें हैं, जिस ज्ञान की चाहत रखते हैं, जिस ज्योतिर्मय प्रकाश को पाना चाहते हैं, उसे कर्म करके प्राप्त नहीं किया जा सकता। अगर ये बस कर्म से मिल जाता तो फिर हम सब को यूँ भटकने की जरुरत ही नहीं होती, क्योंकि कर्म तो हम सब कर ही रहे हैं, जन्म से कर्म ही तो किये जा रहें हैं। तो कर्म  कर ये मिलना मुश्किल है। और रही बात छीन कर लिया जाये तो वो भी संभव नहीं, एक तो संसार में किसके पास है वही पता नहीं और दूसरी अगर किसी के पास है भी तो कोई वस्तु तो है नही कि घर में रखी हो जा कर ले आये। और ये जिनके पास है उनसे हम ज्यादा बलवान हैं ये भी कहाँ पता। तो बस अब एक ही उपाय बचा की जिस किसी के पास ये है, उससे माँग लिया जाये। उससे विनती करें, उसको पुकार कर दया की भीख माँगें, फिर वो हमारी करुण पुकार सुन कर हमें वो चीज दे दें। बस यही एक उपाय बचा।
           अब तक हमने जाना, हम सब जिस को पाने के लिए सदा संघर्ष करते रहते हैं, उसे पाने का तरीका है, उसे माँगा जाये जिसके पास वह है। पर अब वो चीज है किसके पास? तो पहली बात हमारे पास तो नहीं है या है भी तो उसका कुछ पता नहीं, वर्ना खोजने का प्रश्न ही नहीं था। दूसरा हम जो ये सारा संसार देखते हैं, वो चीज यहाँ भी नहीं दीखता, वर्ना हमें न सही किसी के पास तो होती। तो वो चीज जिसको हम सदा  से खोजते आ रहें हैं, वो न तो हमारे पास है और न ही इस संसार में ही है। वेदों ने, हमारे सद्ग्रन्थों ने बताया है, हमारे और इस संसार के अलावा एक और भी है, जिस ने हम सब को और इस संसार को बनाया है। वो असीम शक्ति ही इस सारे ब्रह्माण्ड का रचैता, पालनकर्ता और संहारक है। आप इस शक्ति को जो भी नाम दें, राम, कृष्ण, ईस्वर, अल्ला, जो भी नाम दे दीजिये, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके गुण, स्वाभाव, धर्म आदि पर कोई फर्क नहीं पड़ता। तो बस एक यही है जिसके पास हमारे काम की चीज है और बस इसी एक से ही हमें हमारी अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है। अब जिसने सारे ब्रह्माण्ड की रचना की, जो इसको सुचारू रूप से चला रहा है और अंत समय में सब कुछ इसी में लीन हो जाने वाला है, उस से हम कोई चीज छीन लें, उससे जबरदस्ती ले लें, ऐसी कल्पना भी व्यर्थ है। तो बस एक ही चीज बचा है, माँगने वाली। तो हमें हमारे काम की वस्तु, हमें बस परमपिता परमेस्वर से ही मिल सकती है। अब उनसे वो चीज लेने का तरीका है की उनकी भक्ति की जाये। अनन्य भक्ति की जाये। प्रभु की भक्ति, अनन्य भक्ति से तातपर्य है, उसकी सत्ता में पूर्णता विस्वास होना। संसार में जीवनयापन के लिए यथायोग्य कर्म तो आवश्यक है, लेकिन कर्म करते हुए हम सदा उनको की याद करते रहें। उनकी कृपा करुणा के लिए उनको धन्यवाद देते रहें। तब जा कर सच्चिदानंद आनंदघन प्रभु दया कर, करुणा कर अपना आनंद हमें देगें। हमें वो मिलेगा जिसकी हमें सदा से तलाश है। और कोई रास्ता नहीं, बस प्रभु की करुणा ही एक मात्र सहारा है। और इस सब के लिए हमें कुछ खास करने की जरुरत भी नहीं, भगवन से जो विमुख हुए बैठे हैं, बस उनके सन्मुख हो जाना है। उनकी इच्छा के अनुरूप अपने को ढाल लेना है। ये सरल भी है और सहज भी, अपनी छोटी सी बुद्धि लगा कर बस हम सब खेल बिगाड़ देते हैं। स्वाभाविकता तो ये है की हम सब उनकी करुणामय धरा के साथ बहते चले जाएँ। धर्मग्रंथों ने, साधु-संतों ने अनेकों उपाय बताये हैं, सब के सब सही भी हैं। आप कोई भी रास्ता चुन लें, जो आपको ठीक लगे, जो आप को पसंद आ जाये, और चल पड़ें भक्ति के मार्ग पर। सारे रास्ते बस उस एक के पास ही ले जातें हैं। साधन कोई भी हो साध्य तो बस वो एक ही है। सब रास्तों, सब धर्मों की निचोड़ है, उस एक से प्रेम होना, उसकी सत्ता में विस्वास होना, उस एक के साथ एकाकार होना। ये आप कैसे कर रहें हैं इससे कोई मतलब नहीं, हो सकता है सामने वाले से आप उल्टा कर रहें हों, वो पूरब की ओर  चला जा रहा  है और आप पश्चिम की ओर, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यहाँ बात बस चलने की है। और अगर आप चलते रहें उस प्रेम के पथ पर तो एक दिन अवश्य ही अपनी मंजिल को पा कर रहेंगें। इसमें कोई दो राय  नहीं। सफलता अवश्य ही मिलेगी।
           तो हम सब ने जाना कि प्रभु की भक्ति कर ही हम हमारे लक्ष्य को पा सकते हैं। संसार में हम जो कुछ भी करते हैं, उद्देश्य सब का एक ही है, जीवन से दुःख निवृति और असीम सुख की प्राप्ति। हमने इस लक्ष्य को पाने का प्रयन्त तो किया पर, साधन में ही उलझ कर रह गए और मूल उद्देश्य को भूल ही गए। संसार की चीजों, जो की हमें नहीं मिलीं उसी को अपंना लक्ष्य मान बैठे, लेकिन सांसारिक वस्तु जिसको की हम सुख मानते हैं, जिन्हें वो मिली वो भी उससे संतुष्ट नहीं हो पाये, क्योंकि वो असीम सुख तो उसमे था ही नही। हमें तो कुछ और ही चाहिए था। जिसे संसार में सब कुछ मिल भी गया वो भी कहाँ खुश है। तो हमें अपने सच्चे लक्ष्य को हमेसा ध्यान में रखना चाहिए और उसी बस एक को पाने का प्रयन्त करना चाहिए। उसको पाने का बस एकमात्र तरीका है भगवत भक्ति, चाहे वो जैसे भी हो, जिस किसी भी तरीके से हो। मिलना उसी से है। आइए हम सब मिल कर उस परमपिता से विनती करें कि  हमें सदमार्ग पर ले चलें, हमें ज्ञान दें और अपने तेजोमय ज्योति से सराबोर कर दे। आज के लिए बस इतना ही, हरि ॐ, हरि  ॐ, हरि ॐ ॥  
"असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर् मा अमृतं गमय" 
ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति ॥ 
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1 टिप्पणी:

  1. बड़े दिनों पश्चात भक्ति साहित्य के उत्कृष्ट ,सरस और सुगम सुधारस के पान करने का अवसर प्राप्त हुआ
    Excellent !!

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